किसान कर्ज के बोझ तले दबकर सबसे ज्यादा जान देते हैं।
सरकार पर कर्ज माफी का दबाव भी रहता है। इसे लेकर समय-समय पर सत्ता पक्ष और विपक्ष भी केवल राजनीति कर अपनी रोटियां सेकतें है। यदि सरकार किसान को उसकी उपज का सही मूल्य दिलवाने में कामयाब हो जाए, तो कर्जमुक्ति की नौबत ही न आए। बीते साल पूरे देश ने देखा है कि कई राज्यों के किसानों ने टमाटरों को सड़क पर फेंकना पड़ा था, शिमला मिर्च फ्री में बांटनी पड़ी थी, क्योंकि उन्हें इसका सही दाम नहीं मिल रहा था। किसानों की आमदनी का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। आज किसानों को बेहतर मार्गदर्शन की जरूरत है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की योजनाओं का वक्त पर लाभ पहुंचा कर ही गलत कदम उठाने से रोका जा सकता है। आज भी 50-60प्रतिशत किसान साहूकारों और आढ़तियों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। महज कर्ज माफी या छोटे-मोटे प्रोत्साहन किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की किसान कल्याणकारी योजनाओं का धरातल पर पहुंचना जरूरी है। किसानों के पास जानकारियों का अभाव है। सही मार्गदर्शन और सही समय पर आर्थिक मदद से उनके जीवन स्तर और माली हालत को मजबूत किया जा सकता है। उस पर मानसून की अनियमितता के चलते फसल की बर्बादी, सिंचाई के लिए पानी की सुनिश्चित आपूर्ति न होना और फसल पर कीड़ों और अन्य बीमारियों के हमले का संकट हमेशा छाया रहता है।
किसान कहता है कि कृषि अब बेहद ही घाटे का सौदा बन गया है। बाजार किसानों को उपज का सही दाम नहीं देता है। इसके साथ ही बीज से लेकर पानी और मजदूरी तक की लागत बढ़ रही है, जलवायु परिवर्तन के चलते बेहद खराब मौसम देखने को मिल रहा है। जब फसल महंगी हो जाती है तो सरकार विदेश से सस्ता अनाज आयात कर लेती है।
(युवा किसान ऐकता राष्ट्रीय अध्यक्ष - जितेंद्र चौधरी)
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