भारत एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है. जनसंख्या जितनी तेजी से विकास कर रही है, व्यक्तियों का आर्थिक स्तर और रोजगार के अवसर उतनी ही तेज गति से गिरते जा रहे हैं. भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए यह संभव नहीं है कि वह इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार दिलवा सके।
ऐक और हमारी सरकारे विकास और औद्योगीकरण के नाम पर हमारी कल्याणकारी सरकारें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व बड़े पूंजीपतियों के लिए गरीब खेतिहर किसानों से कोढियों के दाम पर हमारी भूमि का अधिग्रहण करने से भी पीछे नहीं हटतीं. उनका कहना यह है कि अधिग्रहित भूमि बंजर है, जबकि वास्तविकता यह है कि जो भूमि उस किसान और उसके पूरी परिवार को रोजगार उपलब्ध करवाती थी, वह बंजर कैसे हो सकती है.
हमारी सरकारें यह आश्वासन देती हैं कि उद्योग की स्थापना हो जाने के बाद किसानों, जिनकी भूमि अधिग्रहित की गई है, उन किसानों के परिवार में से एक व्यक्ति को उसी उद्योग में नौकरी दी जाएगी। लेकिन जब नौकरी के लिए जाते है तो होता इसके विपरीत। कि उद्योग लग जाने तक किसान मुआवजे की राशि से परिवार का पालन-पोषण करता है और जब उसे किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं मिलती तो गरीबी और तंगहाली के जीवन से मुक्ति पाने के लिए वह आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है
बढ़ती बेरोजगारी की समस्या सीधे रूप से भ्रष्टाचार से जुड़ी है. भ्रष्टाचार जितनी तेजी से फल-फूल रहा है, रोजगार की मात्रा कम होती जा रही है. सरकार ग्रामीण इलाकों में लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए रोजगार संबंधित विभिन्न योजनाएं चला रही है, सरकारी और निजी संस्थानों में भर्ती को पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन वास्तव में यह सभी प्रयास खोखले एवं हवा हवाई साबित हो रहे है
. अगर संजीदा होकर इन सभी में से एक को भी घटाने का प्रयास किया जाए, तो बेरोजगारी की समस्या को समाप्त करना आसान हो सकता है जिसमें सरकार ही नही बल्कि आम जनता को भी सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ देना होगा । तभी हम इस महंगाई ,बेरोजगारी, भृष्ट्राचार रूपी नामक बीमारी को अपने देश भारत से उखाड फेकंने में सक्ष्म हो सकेगे।
जितेंद्र चौधरी
(युवा किसान राष्ट्रीय अध्यक्ष)
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