भारत जो कि गांव में बसा है, अर्थात भारत में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति किसान हैं जिनकी आजीविका और घर खेती से चलते है इसलिए भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। लगभग 68 प्रतिशत किसान वह है जो खेतों में दिन-रात मेहनत करके देश.और समाज का पेट पालते है किसी को भूखा नही सोने देते इसलिए किसान को अन्नदाता अर्थात पालनहार की संज्ञा भी दी गई है लेकिन आज के दिन किसान की हालत दशा बद से बदतर अर्थात दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर क्यों है। किसानों के नाम पर हजारों करोडो के बजट पास होते है बड़ी-बड़ी रिपोर्टें आ चुकी हैं लेकिन इस समस्या का कोई उपाय अब तक हमारी सरकारों ने नही निकाला या निकाल पाई। इनमें से कई रिपोर्ट तो लागू भी हुईं, तो कई दबा दी गईं लेकिन दु:ख की बात यह है कि किसानों की दशा सुधारने के लिए जो उपाय किए गए उनका अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। यदि देखा जाए तो स्वतंत्र भारत से पहले तथा स्वतंत्र भारत के बाद एक लंबा समय बीत जाने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में 19-20 का ही अंतर तक दिखाई नही देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर ही की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। अगर देखा जाए तो देश में किसानों की संख्या कम, खेत मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसका कारण हम यह भी कह सकते हैं कि आज का किसान लगातार गरीब होता जा रहा है। लोग कहते है कि हम किसान कर्ज में जन्म लेते
है, कर्ज में ही पूरा जीवन रहता है और कर्ज में ही मर जाता है। आज का किसान इतना लाचार है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी नहीं दिला पा रहा। हालात यहां तक आ गए हैं कि यदि फसल अच्छी न हो तो किसान आत्महत्या कर लेता है तथा यदि फसल अच्छी भी हो जाए तो मंडी में उपज का वह दाम नहीं मिलता जिस दाम की वह अपेक्षा रख कर मेहनत करता है। केवल फसलों का सही प्रकार से मुआवजा न मिलना किसान की आत्महत्या का कारण नहीं है। भूजल के स्तर में भारी गिरावट भी किसान की बेहाली का सबसे बड़ा कारण मानी जा सकती है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अधिक बोझ आदि परिस्थितियां समस्याओं के एक चक्र की शुरूआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्कर में फंसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्या की है। एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 1990 के बाद भारत में प्रतिवर्ष 10000 से अधिक किसान आत्महत्या करते आ रहे हैं। देश में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं तथा इस कारण लोग खेती छोड़कर अलग-अलग पेशा अपना रहे हैं। हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि किसानों को आए दिन आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। जब रोष-प्रदर्शन करने पर भी कुछ नहीं मिलता तो किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि राज्य व केंद्र सरकार किसानों की ऐसी दशा देख कर परेशान नहीं है। सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं कि किसानों की आत्महत्याओं में किसी तरह कमी लाई जा सके। इस बारे में सोचते हुए सरकार अनेक योजनाएं भी बना रही है, जिनमें से मुख्य रूप से किसानों की दयनीय दशा को देखते हुए अनेक राज्य कृषि ऋण को माफ करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं परंतु ऐसा करना समस्या का दीर्घकालीन समाधान नहीं कहा जा सकता। किसान और कृषि प्रधान देश का जो नारा संसद तक ही सीमित रहा, उसे आज पूरे भारत में लागू करना होगा। किसानों की समस्या का एक ही समाधान है और वह है कि कृषि लागत पर नियंत्रण और कृषि उपज की सही कीमतें सुनिश्चित करना। खेती के लिए उन्हें इतनी सुविधाएं मिलें कि वे इसे बोझ न समझें। सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इस संदर्भ में फसल बीमा योजना अभूतपूर्व है। सभी मौसमों में प्रत्येक फसल के लिए बीमा योजना का लाभ उठाया जा सकता है। सभी फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया है। बिजली से वंचित गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए एक व्यापक योजना बनाई जा रही है। नई मोदी सरकार के लिए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना बड़ी प्राथमिकता है। सरकार बनते ही प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना के दायरे को बढ़ाया गया है। इसमें देश के हर किसान को शामिल करने की मंजूरी दी गई है। कहीं न कहीं सरकार भी समझती है कि क्षेत्र की समस्याओं को दूर किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती। किसानों को कृषि के साथ-साथ अन्य छोटे-छोटे व्यवसाय भी अपनाने चाहिएं ताकि उनकी आमदन के स्रोत बढ़ जाएं और उन्हें आॢथक कठिनाइयों से छुटकारा मिल सके।
जितेंद्र चौधरी
युवा किसान एकता राष्ट्रीय अध्यक्ष
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